जैसा की हम सब जानते है की डाॅलर दुनिया की सबसे मजबूत और बड़ी करेंसी है. ऐसे में बहुत से छोटे देश भी अमेरिका की डाॅलर करेंसी को अपने मुद्रा की तरह भी इस्तेमाल करते है. कई बार आपके भी मन में ये सवाल आता होगा की क्यों डाॅलर ही दुनिया की सबसे बड़ी और मजबूत करेंसी है. तो आज ये खबर आप ही के लिए है यहां हम आपको बताएगें इस बात के पिछे की वजहों के बारें में तो चलिए जानते है.
कब हुई थी शुरू ?
आपको बतादे की अमेरिका की करेंसी डाॅलर को सन 1690 में शुरू किया गया था. लेकिन उस समय पर इस करेंसी का इस्तेमाल केवल मिलिट्री के खर्चों को पूरा करने के लिए किया जाता था. फिर साल 1785 में डाॅलर के लिए आधिकारिक साइन का चयन किया गया. जिसके बाद से अमेरिका के डाॅलर में काफी बदलाव आए और इस समय पर अमेरिका की करेंसी को केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 1914 में शुरू किया था.
बतादें की केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की स्थापना साल 1913 में की गई थी. जिससे फेडलर रिजर्व एक्ट के जरिए स्थापित किया गया था. आपको बतादें की इससे पहले अमेरिका में अलग अलग बैकों से बैकनोटो को इश्यू किया जाता था. जिसकी वजह से अमेरिका में माॅनेटरी सिस्टम चलता था. उस समय पर अमेरिका ने ब्रिटेन को पिछे छोड़ दिया था और वो दुनिया की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था बन गया था. लेकिन बतादें की ब्रिटेन के पाउंड का आज भी बोलबाला कम नही है और ज्यादाता कारोबार भी ब्रिटेन की करेंसी पाउंड से ही चलाया जाता है.
आपको बतादें की गोल्ड स्टैंडर्ड के जरिए आज के समय में करेंसी को स्पोर्ट किया जाता है जिसका मतलब ये है की जिस देश के पास जितना सोना है वो देश उतने ही नोट छाप सकता है. पहलें विश्व युद्व के दौरान ऐसे बहुत से देश थे जिन्होनें गोल्ड स्टैंडर्ड को छोड़ कर अपनी करेंसी की वैल्यू को गिरा दिया था. लेकिन उस समय पर ब्रिटेन ने अपनी करेंसी की वैल्यू को नही गिरने दिया था क्योंकि ब्रिटेन ने गोल्ड स्टैंडर्ड को नही छोड़ा था.