मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन ने छोड़ा मंत्री पद
दिल्ली सरकार के ऊपर एक बार फिर राजनीतिक के काले बादल मंडरा गए हैं।। दिल्ली सरकार में रहे सबसे गद्दार नेता डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और जेल मंत्री सत्येंद्र जैन ने मंगलवार को मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. दोनों ही आप नेता इन दिनों विवादों में घिरे हुए हैं. मनीष सिसोदिया को कुछ दिनों पहले ही CBI ने हिरासत में लिया था जबकि सत्येंद्र जैन कई महीनों से तिहाड़ जेल में बंद हैं. जानकारी के मुताबिक सीएम अरविंद केजरीवाल ने दोनों मंत्रियों के इस्तीफे मंजूर कर लिए हैं.ll
क्यों देना पड़ा मंत्री पद से इस्तीफा
सवाल उठने लगा है कि आखिर मनीष सिसोदिया से गिरफ्तारी के दो दिन के भीतर जबकि सत्येंद्र जैन से नौ महीने बाद क्यों इस्तीफा लिया गया? इसके पीछे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की क्या सियासत है।
आइए जानते हैं।
नई शराब नीति के लिए कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के मामले में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने रविवार को गिरफ्तार किया था। सोमवार को कोर्ट में पेश कर पांच दिन की रिमांड हासिल कर ली थी। सीबीआई की इस कार्रवाई के खिलाफ मंगलवार को सिसोदिया सुप्रीम कोर्ट पहुंचे लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली। कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट जाने की सलाह दे दी। इसके बाद शाम को अचानक से सिसोदिया ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपना इस्तीफा भेज दिया।
उधर, मनी लॉन्ड्रिंग केस में पिछले नौ महीने से तिहाड़ जेल में बंद सत्येंद्र जैन ने भी इस्तीफा दे दिया। जैन ने लंबे समय तक जेल से ही स्वास्थ्य मंत्री का भी कामकाज संभाला था। हालांकि, बाद में उनसे स्वास्थ्य विभाग लेकर
मनीष सिसोदिया को दे दिया गया था। सिसोदिया के पास दिल्ली के 33 में से 18 विभाग थे। अब चूंकि सिसोदिया खुद कानून के शिकंजे में फंसे हुए हैं। ऐसे में दोनों को मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
सिसोदिया का इस्तीफा, केजरीवाल के “मिशन पर भारी
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय मंच पर केजरीवाल और उनकी पार्टी की आकांक्षाओं के लिए यह एक बड़ा झटका है जो पार्टी को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है. इतना ही नहीं बिना किसी मंत्रिपद वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल की सबसे बड़ी तात्कालिक परेशानी
हैं की राज्य का अगले वित्त वर्ष का बजट कौन पेश करेगा.
पार्टी की छवि को कौन संभालेगा?
सिसोदिया आम आदमी पार्टी की प्रमुख योजनाओं का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने और शिक्षा क्षेत्र में सिसोदिया ने काफी काम किया है.पार्टी सिसोदिया को भारत का “सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मंत्री” बताती रही है और उनकी अनुपस्थिति से शिक्षा विभाग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है. इन सभी क्षेत्रों में कुछ भी नया करने के पीछे सिसोदिया की ही सोच रही है.
इसके अलावा दिल्ली में इस साल जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए दिल्ली सरकार सक्रिय रूप से राष्ट्रीय राजधानी के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने ने के लिए काम कर रही है.ऐसे में शहरी विकास, पर्यटन, वित्त, गृह और पीडब्ल्यूडी जैसे जो विभाग सिसोदिया के पास थे उनके मैनेजमेंट में आम आदमी पार्टी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
5- चुनावों से पहले राजनीतिक विस्तार में रोड़ा
ऐसे समय में जब आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं, सिसोदिया की गिरफ्तारी पार्टी की योजनाओं के लिए एक बड़ा झटका है. केजरीवाल ने पिछले साल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद अपनी पार्टी की चुनावी संभावनाओं का विस्तार करने के लिए अगले महीने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित चार राज्यों का दौरा करने की योजना बनाई है.
पार्टी इस कठिन समय में सिसोदिया की गिरफ्तारी के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रही है. पार्टी के नेता इन प्रदर्शनों को राज्यों और शहरों में पार्टी के राजनीतिक विस्तार को बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देख रहे हैं. वह वहां भी पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जहां आम आदमी पार्टी का ज्यादा समर्थन आधार नहीं है.
आम आदमी पार्टी के आलोचक इन प्रदर्शनों को कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश की सुनियोजित रणनीति बता रहे हैं जहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.जैन और सिसोदिया की क़ैद के बाद, आम आदमी पार्टी के पास अपने चुनाव अभियानों के दौरान भीड़ खींचने वाले नाम नहीं होंगे. ऐसे में, अरविंद केजरीवाल पर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखने और 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी होगी. अब देखना यह होगा कि पार्टी और कार्यकर्ता का मनोबल केसे बना रहेगा।।