IAS जी.कृष्णैया की पत्नी टी. उमा देवी ने आनंद मोहन की रिहाई पर अफसोस जताया है.उन्होंने, पूर्व सांसद आनंद मोहन को बिहार जेल नियमों में हुए बदलाव के तहत रिहा करने के संबंध में कहा कि ईमानदार अधिकारी को मारने वाला छूट गया. उन्हेंने इसे अन्याय बताया है साथ ही कहा कि सरकार ने बहुत गलत फैसला लिया है.
17 की उम्र में शुरू हुआ सियासी सफर।
आनंद मोहन सिंह का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ था। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थी। बताते हैं कि आनंद मोहन का सियासी सफर 17 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने 1974 में जेपी आंदोलन से राजनीति में कदम रखा और इमरजेंसी के दौरान उन्हें दो साल तक जेल में रहना पड़ा। 1980 में उन्होंने समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की। इसे आनंद मोहन की प्राइवेट आर्मी कहा जाता था। इसके बाद उनका नाम अपराधियों की सूची में शुमार होता गया।
1990 में हुई राजनीति में एंट्री।
आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1990 में हुई। उन्हें जनता दल ने माहिषी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा, और उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद आनंद मोहन ने 1993 में अपनी खुद की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थान की और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया। 1994 में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता। 1995 आते-आते आनंद मोहन का नाम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने लगा और वह लालू यादव का मुख्य विरोधी चेहरा माने जाने लगे। 1995 में आनंद मोहन की पार्टी ने बिहार में बेहतर प्रदर्शन भी किया, हालांकि, खुद आनंद मोहन को हार का मुंह देखना पड़ा। 1996 में आनंद मोहन ने शिवहर लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और समता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की। आनंद मोहन का रसूख इतना था कि इस समय जेल में रहते हुए भी उन्होंने जीत हासिल की थी। 1999 में आनंद मोहन ने एक बार फिर सीट से जीत हासिल की।
आनंद मोहन को क्यों हुई थी जेल।
ये घटना पांच दिसंबर 1994 की है. बिहार में एक गैंगस्टर के मारे जाने के बाद मुजफ्फरपुर की जनता में आक्रोश था. इसी दौरान गोपालगंज की डीएम रहे जी. कृष्णैया अपनी सरकारी गाड़ी से उसी रास्ते से आ रहे थे. आक्रोशित भीड़ ने उन्हें लिंच किया था और डीएम को गोली भी मारी गई थी. आरोप था कि डीएम की हत्या करने वाली उस भीड़ को कुख्यात आनंद मोहन ने ही उकसाया था. यही वजह थी कि पुलिस ने इस मामले में आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को नामजद किया था.
राष्ट्रपति और पीएम से हस्तक्षेप करने की रखी मांग।
IAS कृष्णैया की पत्नी ने कहा कि एक ईमानदार अफसर की हत्या करने वाले को छोड़ा जा रहा है, इससे हम समझते हैं कि न्याय व्यवस्था क्या है? उन्होंने कहा कि राजपूत समुदाय सहित अन्य समुदायों में भी इस रिहाई का विरोध होना चाहिए. उसे रिहा नहीं किया जाना चाहिए, उसे दंडित किया जाना चाहिए और मौत की सजा दी जानी चाहिए. उमा देवी ने कहा कि ‘मैं प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने और इसे रोकने का अनुरोध करती हूं.’
2008 में उम्रकैद में बदली थी सजा।
ये केस अदालत में चलता रहा और साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी करार दिया और फांसी की सजा सुना दी. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जब एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में आनंद मोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. तभी से वो जेल में बंद थे
बिहार सरकार ने ऐसे दी रिहाई।
इसके बाद, बिहार की वर्तमान सरकार ने कुख्यात आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकालने की तरकीब निकाली. राज्य सरकार ने इसी साल 10 अप्रैल को जेल नियमावली में एक संशोधन कर डाला और उस खंड को हटा दिया, जिसमें अच्छा व्यवहार होने के बावजूद सरकारी अफसरों के कातिलों को रिहाई देने पर रोक थी. राज्य गृह विभाग ने बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए में संशोधन की जानकारी एक नोटिफिकेशन जारी करके दी थी.