कोदो-कुटकी-सांबा जिसे आदिवासी समुदाय का खाना माना जाता है.परंतु इसके स्वाद और पोष्टिक तत्वों के कारण अब ये अमीरों का स्वाद बन चुका है.बड़े-बड़े शहरों में अब इसकी मांग बढ़ती जा रही है.बढ़ती मांग के चलते छिंदवाड़ा के कई इलाकों में किसानों ने इसके लिए फैक्ट्री खोल ली है. आदिवासी किसान अब इस फूड को कुटकी-सांबा के चावल,कुटकी के बिस्किट के तौर पर बेच रहे है. आदिवासियों के इस काम की प्रशंसा नरेंद्र मोदी ने भी की है.
दरअसल अंचल के छिंदवाड़ा में आदिवासी समुदाय ने 26,000 हेक्टेयर कोदो, कुटकी, सांबा, रागी और ज्वार की खेती करते है.इस अनाज से बनें चावल,मल्टीग्रेन आटा, कुकीज को अब सरकारी स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है.
दस सालों पहले इस अनाज के पोष्टिक तत्वों को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैली थी. कोरोना काल में इसे लोगों पे इस्तेमाल करना शुरू किया.2014 में इसकी मांग इतनी बढ़ी के छिंदवाड़ा के तामिया में आदिवासियों ने किसानों की एक ऑर्गेनाइजेशन का गठन करते हुए एक फैक्ट्री का निर्माण किया जिसे नाबार्ड ने भी स्पोर्ट किया.
इस अनाज से किसानों को 70 लाख तक का मुनाफा हो रहा है.जिससे आदिवासी किसान एक बेहतर कमाई कर पर रहे है.ये सूपर फूड अब राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुका है और अब इसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की तैयारी जारी है.