आज है पापमोचनी एकादशी व्रत। जानें मुहूर्त और शुभ योग।

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पापमोचनी एकादशी शनिवार 18 मार्च 2023 को है. शनिवार को एकादशी होने से विष्णु जी के साथ ही शनि की पूजा करने का शुभ योग बन रहा है। आज चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 02 बजकर 06 मिनट से शुरु होकर आज सुबह 11 बजकर 13 मिनट तक है। एकादशी के दिन व्रत, पूजन और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इस साल पापमोचनी एकादशी पर ग्रहों का खास संयोग बन रहा है, ऐसे में जगत के पालनहार की पूजा का शीघ्र फल प्राप्त होगा।

इसी शुभ सयोंग पर करे ये।

पापमोचनी एकादशी और शनिवार का संयोग होने से व्रती इस दिन शनि देव का तेल से अभिषेक करें. काले तिल, काली उड़क का दान करें. गरीबों को जूते-चप्पल भेंट करें. मान्यता है कि शनि देव जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसके वारे न्यारे हो जाते हैं ऐसे में सुबह श्रीहरि और शाम को शनि देव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी।
शनि देव के आशीर्वाद से जीवन के कष्ट मिटते हैं. शनि देव प्रसन्न होकर साढ़ेसाती और ढैय्या से भी राहत देते हैं. जो लोग अपने से कमजोर और नीचे के कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, असहाय लोगों की मदद करते हैं, दान देते हैं, उन लोगों से शनि देव प्रसन्न होते हैं।

व्रत की महिमा

एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है। पदम पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या,सुवर्ण चोरी,सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं,अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्यमय है । मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सभी प्रकार की मानसिक समस्या दूर हो जाती है।

कैसे करे पूजा।

पापमोचिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है,ऐसा शास्त्रों में लिखा है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। स्नान कर स्वच्छ और सात्विक रंगों के वस्त्र धारण करें और फिर मन में व्रत का संकल्प लें। पंचामृत से भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर पीला चन्दन लगाएं,पुष्प अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप जलाएं, आरती करें और व्रत की कथा पढ़ें। सात्विक रहते हुए जितना संभव हो ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करें।

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