वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार आज के दिन ही भगवान विष्णु ने नरसिंह भगवान के रूप में अपना पांचवा अवतार लिया था. विष्णु भगवान ने यह अवतार अधर्म और अहंकार का नाश करने के लिए लिया था. श्री हरि के सभी अवतारों में नरसिंह अवतर को बहुत ही उग्र माना गया है. हालांकि अपने भक्तों के लिये वो सदैव सौम्य रूप में ही रहते हैं।
पौराणिक कथा।
कश्यप ऋषि के दो पुत्रों में से एक का नाम हिरण्यकश्यप था। उसने कठोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया था कि उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव मार नहीं पाएगा। न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, न आकाश और न ही पाताल में, न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से। यह वरदान प्राप्त करके वह खुद को ईश्वर समझ बैठा था।हिरण्यकश्यप अपनी प्रजा को स्वयं की पूजा करने के लिए दबाव डालने लगा, जो उसकी पूजा नहीं करता उसे वह तरह तरह की यातनाएं देता था। वह भगवान विष्णु के भक्तों पर क्रोध करता था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रह्लाद था। वह भगवान विष्णु का परमभक्त था।
जब इसकी जानकारी हिरण्यकश्यप को हुई तो उसने प्रह्लाद को समझाया। उसने अपने बेटे से कहा कि उसके पिता ही ईश्वर हैं, वह उनकी ही पूजा करे। लेकिन हिरण्यकश्यप के बार-बार मना करने पर भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी।हिरण्यकश्यप ने इसे अपना अपमान समझ कर प्रह्लाद को मारने के लिए कई यत्न किए, लेकिन श्रीहरि विष्णु की कृपा से वह बच जाता। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने के लिए मनाया। होलिका को वरदान मिला था कि आग से उसका बाल भी बांका नहीं होगा। लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी, तो श्रीहरि की कृपा से वह स्वयं उस आग में जल गई और प्रह्लाद बच गया।
अंत में क्रोधित हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को खंभे से बांध कर उसे मारने के लिए अपनी तलवार निकाली और बोला बता तेरा भगवान कहां है, प्रहलाद ने कहा कि भगवान यहीं इसी खंबे में हैं, जहां आपने मुझे बांध रखा है। जैसे ही हिरण्कश्यप ने प्रह्लाद को मारना चाहा, वैसे ही भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंभे से बाहर निकल आए और हिरण्कश्यप का वध कर दिया।
नरसिंह जयंती की पूजा विधि
आज नरसिंह भगवान की पूजा के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. अब पूरी आस्था के साथ भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप करें और उनके नाम की 11 मालाएं करें. लाल कपड़े में नारियल लपेट कर भगवान को अर्पित करें. उन्हें मिठाई, फल, केसर, फूल और कुमकुम चढ़ाएं. नरसिंह जयंती के दिन नरसिंह स्तोत्र का पाठ जरूर करें. अंत में आरती उतारें और भोग को प्रसाद के रूप वितरित करें।