मध्यप्रदेश की अस्पताल व्यवस्था सरकारों की पोल खोलती हुई नजर आ रही है। एक तरफ सरकार मैं रह रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री शिक्षा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर गंभीर नजर रखने की बात करते हैं खासकर के स्वास्थ्य की व्यवस्था पर बात करते हैं मंचों से बड़े बड़े वादे करते हैं और आज जमीनी हालत कुछ और हैं। आम जन परेशान हैं। धार तो अच्छा इलाज नहीं होने के कारण मरीजों को पहचान से भी हाथ धोना पड़ता है
अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठना मानो अधिकारियों के लिए आम बात हो गई हैं। लेकिन सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। खासकर डॉक्टर के समय पर ड्यूटी नही करने की शिकायत तो आम है। सदर अस्पताल ओपीडी चालू होने का समय सुबह 9 बजे से है, लेकिन ओपीडी में डॉक्टर अधिकांशतः 10 बजे के बाद ही पहुंचते हैं। मरीज सुबह 8 बजे से ही अस्पताल पहुंचने लग जाते हैं। लेकिन डाक्टरों को मरीजों के परेशानी से कोई वास्ता नहीं दिखता है। शुक्रवार को मामले की पड़ताल की गई तो देख गया कि सदर अस्पताल के ओपीडी के जनरल रोग विभाग में तैनात डॉक्टर सुबह 10:15 बजे तक ड्यूटी पर नहीं पहुंच पाए थे। कमरे में एक महिला स्वास्थ्य कर्मी मौजूद थी, लेकिन डाक्टर के नहीं पहुंचने से उनकी कुर्सी खाली थी। बाहर में 50 से अधिक मरीज कतार में बैठे डाक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे। जबकि डॉक्टर के मौजूद नहीं रहने के कारण कई परिजन मरीज को निजी अस्पताल ले गए। स्थिति यह है कि भीषण गर्मी और लू की स्थिति को देखते हुए सरकार ने विभाग को हमेशा पूरी तरह अलर्ट मोड में रहने का निर्देश दिया है। फिर भी डॉक्टर लापरवाह बने हुए हैं। यह लापरवाही इमरजेंसी की स्थिति में लोगों पर भारी पड़ सकती है।
सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों के आने-जाने के समय पर निगरानी के लिए सार्थक एप की व्यवस्था की गई है। इसे लागू हुए भी चार महीने हो चुके हैं। यह केवल नाम के लिए चल रही है। इसकी बड़ी वजह सीएमएचओ, सिविल सर्जन से लेकर बड़े अधिकारियों की ढिलाई है। स्वास्थ्य संचालनालय ने निगरानी की जिम्मेदारी जिलों में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) और सिविल सर्जन को दी थी, पर वह यह व्यवस्था लागू नहीं करा पाए हैं।
शहर में सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों के पहुंचने का रियालिटी चेक किया तो पाया, तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारी अस्पतालों के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे।
बुधवार सुबह जिला अस्पताल ओपीडी में मरीज डॉक्टरों का इंतजार करते रहे ओपीडी का समय हो तो सुबह 9:00 बजे से है लेकिन 9:20 बजे तक भी डॉक्टर मौजूद नहीं थे। लगभग यही स्थिति इंदौर के दूसरे सरकारी अस्पतालों में भी थी। ज्यादातर जगह मरीज कतारबंद होकर डॉक्टरों का इंतजार करते मिले। हुकमचंद पॉलीक्लिनिक जैसे इक्का-दुक्का अस्पतालों में जरूर व्यवस्थाएं समुचित मिली।
अमरनाथ यात्रा के लिए सर्टिफिकेट बनवाने की सुविधा सुबह 9 बजे से है, लेकिन वहां पर 9.30 बजे तक भी कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था।
कैंसर अस्पताल में सुबह 9.35 बजे तक डॉक्टर नदारद थे और मरीज इंतजार में बैठे थे।
एमवाय अस्पताल में एक मरीज द्वारकापुरी से पहुंचा था, जो डाक्टर का इंतजार कर रहा था।
हालांकि नेत्र रोग ओपीडी में डा मनुश्री गौतम मरीज़ों की जांच कर रही थी।
सीएमएचओ और सिविल सर्जन के ऊपर यह व्यवस्था लागू कराने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य संचालनालय में डायरेक्टर से लेकर मंत्री तक थी, पर उन्होंने भी सख्ती नहीं की। ऐसे में देर से आने-जाने वाले डाक्टरों को मौका मिल गया। कुछ डाक्टर ही सार्थक पोर्टल पर उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। मप्र चिकित्सा अधिकारी संघ व तृतीय श्रेणी कर्मचारियों के सगंठन भी सार्थक एप का शुरू से विरोध कर रहे हैं। इसके पहले स्वास्थ्य विभाग में बायोमैट्रिक से उपस्थिति का प्रयास भी विफल हो गया है।