कर्मनासा नदी, जिसका नाम 'कर्म' और 'नाशा' से मिलकर बना है, का अर्थ है "धार्मिक पुण्य का नाशक," और यह नदी विशेष रूप से अपने श्रापित होने के लिए जानी जाती है।
यह नदी बिहार के कैमर जिले में उत्पन्न होती है और उत्तर प्रदेश एवं बिहार के कई जिलों से होते हुए, गंगा नदी में मिल जाती है।
कर्मनासा नदी का आगमन एक पौराणिक कहानी से जुड़ा हुआ है, जिसमें त्रिशंकु नामक राजा का जिक्र होता है। कहा जाता है कि यह नदी राजा त्रिशंकु की लार से बनी है जब वह हवा में उल्टा लटका हुआ था।
इस कथा के अनुसार, त्रिशंकु को ऋषि विश्वामित्र ने श्राप दिया था, जिसके कारण कर्मनासा नदी को भी श्रापित माना जाने लगा, जिससे लोग इसके जल को छूने से भी डरते हैं।
कर्मनासा का जल इतना अपवित्र माना जाता है कि लोग इसके पानी का इस्तेमाल खाना बनाने या धुलाई के लिए नहीं करते, बल्की वे स्थानीय फलों और सूखे मेवों पर निर्भर होते हैं।
कर्मनासा नदी के किनारों पर रहने वाले लोग इस नदी के जल को छूने से बचते हैं, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी किस्मत पर बुरा असर पड़ सकता है।
नदी की नकारात्मक सोच के कारण, स्थानीय लोग इसके आसपास की भूमि से प्राप्त वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं, जिससे उनके जीवनशैली पर प्रभाव पड़ता है।
कर्मनासा नदी का इतिहास और इसके जल के प्रति लोगों का डर, भारतीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जब लोग नदी के किनारे जाते हैं, तो वे इसके जल से दूर रहने का प्रयास करते हैं, और कई बार तो इसका दर्शन करने में भी हिचकिचाते हैं।
भले ही कर्मनासा नदी को अपवित्र माना जाता है, लेकिन यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण है और जलवायु संतुलन में योगदान देती है।
विभिन्न शोधों के अनुसार, कर्मनासा नदी का जल इकट्ठा होने और उसके प्रवाह के कारण आसपास की भूमि की कृषि उत्पादन में भी भूमिका निभाता है।
कर्मनासा नदी की धार्मिक और सांस्कृतिक कहानी, न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि समस्त भारतीय समाज के लिए एक सीख और चेतावनी का रूप है, जो अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देती है।